उत्तर प्रदेश के स्कूलों में बेसिक शिक्षा विभाग ने प्री-प्राइमरी के बच्चों को स्कूल, शिक्षकों और सहपाठियों के करीब लाने के लिए ‘School Readiness Program‘ शुरू किया है। आइए विस्तार से जानते हैं कि स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम क्या है और स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम में बच्चों को क्या खास सीखने को मिलेगा।

स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम क्या है
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम (School Readiness Programme) बेसिक विभाग द्वारा 12 सप्ताह की विस्तृत योजना है। इसमें अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से मस्तिष्क का 80 प्रतिशत भाग छह वर्ष की आयु तक विकसित हो जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए प्री-प्राइमरी कक्षाओं में और उनमें सीखने के आधार को विकसित करना बहुत जरूरी है।
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूलों में प्री-प्राइमरी शिक्षा के प्रावधानों पर आधारित यह कार्यक्रम शुरू किया गया है। योजना के तहत जिला स्तर पर शिक्षकों को चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता बढ़ाई जाएगी।
उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते बच्चे स्कूलों से दूर हैं। इससे बच्चों की कक्षाओं में पढ़ने, नए सहपाठियों के साथ मेलजोल और घर के बाहर के वातावरण के अभ्यस्त होने की आदत छूट गई है। ऐसे में बच्चों के लिए ‘School Readiness Program’ शुरू किया जाएगा।
स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम का महत्व
इसके तहत कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को स्कूल में घर जैसा माहौल दिया जाएगा। साथ ही कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर जोर दिया जाएगा। इसके तहत मिशन प्रेरणा पोर्टल पर शिक्षकों की कार्ययोजना दी गई है।
स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम के दौरान विषयों की जानकारी, शब्दों और अक्षरों को पहचानने की क्षमता, शिक्षकों से परिचय, पढ़ने और लिखने की क्षमता की स्थिति पर भी जोर दिया जाएगा।
तीन महीने तक चलने वाले इस School Readiness Programme के तहत छोटों को व्यवहार और ध्यान की जानकारी भी दी जाएगी। इसके लिए बच्चों को कला की किताबें दी जाएंगी। साथ ही अभिभावकों की उपस्थिति में पुस्तक वाचन और आंतरिक प्रतिभा पर विशेष रूप से चर्चा की जाएगी।
स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम की विशेषताएं
1. मौखिक भाषा का विकास: स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम के घटक में प्रथम तौर पर मौखिक भाषा का विकास किया जाएगा। इसमें बच्चों के साथ चित्रों, वस्तुओं, उनके आस-पास की चीजों आदि पर बातचीत की जाएगी। बच्चों को बातचीत में अपनी स्थानीय भाषा में खुद को व्यक्त करने दें। बातचीत के दौरान यह भी बताया जा सकता है कि स्थानीय भाषा के कुछ शब्द हिंदी में क्या बोले जाते हैं।
2. बौद्धिक विकास: स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम (School Readiness Programme) में बच्चों के साथ सूक्ष्म अवलोकन, अंतर खोज, तुलना आदि पर काम किया जाएगा।
3. लेखन कौशल का विकास – इसमें बच्चों के साथ काम करना, रेखाएँ खींचना, पैटर्न बनाना आदि शामिल होंगे, जो उनके हाथ के संतुलन और आगे लेखन कौशल सीखने के लिए महत्वपूर्ण है।
4. कहानी और कविता: बच्चों को कहानियां सुनाई जाएंगी, बच्चों से कहानी सुनी जाएगी और कहानी और कविता की समझ के संबंध में बातचीत की जाएगी।
5. ध्वनि जागरूकता: इसमें शब्दों की ध्वनियों को सुनने, समझने, भेद करने और पहचानने पर काम किया जाएगा।