यह सममात्रिक छन्द है। इसे ‘काव्य छन्द’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कुल 24 मात्राएं होती है जिसमें 11 एवं 13 मात्राओं पर यति होता है। कहने का तात्पर्य है कि पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे में 13-13 मात्राएं होती है। यह दोहा का उल्टा होता है। इस लेख में हम रोला की परिभाषा क्या है जानेंगे।

रोला की परिभाषा
रोला छंद में चार चरण होते हैंl यह मात्रिक सम छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इसमें यति क्रमशः 11 व 13 मात्राओं पर होती है। इसमें तुक प्रायः दो-दो चरणों में मिलती है। रोला शब्द मे चार शब्द है तो आप रोला मे आप याद रख सकते है कि ये सम मात्रिक छंद है ।
रोला की एक विशेष लय होती है जो किसी जाने माने रोला छंद को सस्वर गाने से मन में अनुकरण द्वारा स्थापित हो जाती है, फिर उसी लय पर किसी नवीन भाव के साथ नवीन रोला छन्द की रचना की जाती है।
दोहा के चरण 1, 2 तथा चरण 3 , 4 का क्रम परस्पर बदल देने से से जो छंद बनता है उसे सोरठा कहते है और उसकी प्रत्येक पंक्ति का मात्राक्रम 11,13 होता है किन्तु वह रोला का चरण नहीं हो सकता है जबकि रोला के चरण का मात्राभार भी 11,13 ही होता है। कारण यह है की दोनों के उत्तरार्द्ध की लय भिन्न है।
उदाहरण
उदाहरण 1–
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
उदाहरण 2 –
उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
उदाहरण 3 –
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर l
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूरll
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