रणमल छंद (Ranmal Chand) हिंदी साहित्य में वीर कविता का एक रूप है जो 15 वीं शताब्दी में पाटन के सूबेदार मुजफ्फर शाह के खिलाफ बहादुरी से लड़ने वाले एडर के राजा रणमल की कहानी बताता है। कविता में 70 छंद हैं जो रणमल और उनके वफादार योद्धाओं के साहस, वीरता और बलिदान का वर्णन करते हैं। इस लेख में हम रणमल छंद किसकी रचना है और उसकी विशेषताओं को जानेंगे।

रणमल छंद किसकी रचना है
कविता की रचना मारवाड़ के शासक व्यास राजा रामपाल के शासनकाल के दौरान रहने वाले कवि और विद्वान श्रीधर व्यास ने की थी। श्रीधर व्यास ने दुर्गा सप्तशती भी लिखी, जो देवी दुर्गा पर एक भक्तिपूर्ण कृति है। वह पृथ्वीराज रासो की शैली और विषयों से प्रभावित थे, जो चंद बरदाई की एक महाकाव्य कविता है जो पृथ्वीराज चौहान की वीरता का जश्न मनाती है।
रणमल छंद, छंद का एक उदाहरण है। छंद को कविता का विज्ञान माना जाता है और पिंगला, हेमचंद्र और केदारनाथ भट्ट जैसे प्राचीन और मध्यकालीन विद्वानों द्वारा इसका व्यापक अध्ययन किया गया है।
रणमल छंद की विशेषताएं
रणमल छंद कुंडलिया नामक एक विशिष्ट छंद का अनुसरण करता है, जो दो अन्य छंदों का एक संयोजन है: दोहा और रोला। दोहा प्रत्येक पंक्ति में 24 अक्षरों वाला एक चतुर्थांश है, जबकि रोला प्रत्येक पंक्ति में 18 अक्षरों वाला एक दोहा है। कुण्डलिया में कुल छह पंक्तियाँ होती हैं: दो दोहे के बाद एक रोला।
रणमल छंद राजस्थान के मध्यकाल के बारे में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत है। यह उस समय के राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों, रीति-रिवाजों और परंपराओं, धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं और लोगों की कलात्मक अभिव्यक्तियों को दर्शाता है।
यह श्रीधर व्यास के काव्य कौशल और कल्पना को भी प्रदर्शित करता है, जिन्होंने एक शक्तिशाली और गतिशील कथा बनाने के लिए ज्वलंत कल्पना, उपमा, रूपक, अनुप्रास और अन्य साहित्यिक उपकरणों का उपयोग किया। रणमल छंद हिंदी साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति है जिसे कविता और इतिहास के सभी प्रेमियों द्वारा पढ़ा और सराहा जाना चाहिए।