मीराबाई (Meera Bai) सोलहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट छंदों की रचना की है। संत रविदास उनके गुरु थे। ऐसा माना जाता है कि मीरा अपने पिछले जन्म में वृंदावन की गोपी थी और वह उन दिनों राधा की सहेली थी। उन्हें भगवान कृष्ण से गहरा प्रेम था। गोप से विवाह करने के बाद भी उनका श्रीकृष्ण से लगाव कम नहीं हुआ और उन्होंने कृष्ण से मिलने की लालसा में अपने प्राण त्याग दिए। बाद में उसी गोपी ने मीरा के रूप में जन्म लिया। इस लेख में हम मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई इसकी पूरी कहानी जानेंगे।

मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई
जोधपुर के राठौड़ रतन सिंह की इकलौती बेटी मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन थीं। मीराबाई के बच्चे से कृष्ण की छवि बस गई थी, इसलिए युवावस्था से लेकर मृत्यु तक वह कृष्ण को ही अपना सब कुछ मानती थीं। बचपन की एक घटना के कारण कृष्ण के प्रति उनका प्रेम अपने चरम पर पहुंच गया था।
उनके बचपन में एक दिन उनके पड़ोस में एक धनी व्यक्ति के यहां बारात आई। सभी महिलाएं छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने छत पर आई थीं। बारात देखकर मीरा ने अपनी मां से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर मीराबाई की मां ने उपहास में भगवान कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह तुम्हारा दूल्हा है। यह बात मीराबाई के बचपन में एक गांठ की तरह बैठ गई और वह कृष्ण को अपना पति मानने लगी।
मीराबाई के परिवार वाले विवाह योग्य होने पर उसकी शादी करना चाहते थे, लेकिन मीराबाई कृष्ण को अपना पति मानने के कारण किसी और से शादी नहीं करना चाहती थीं। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ।
शादी के कुछ साल बाद मीराबाई के पति भोजराज का देहांत हो गया। पति की मृत्यु के बाद मीरा ने भोजराज के साथ सती करने का भी प्रयास किया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद मीरा वृंदावन और फिर द्वारका चली गईं। वहां जाकर मीरा ने कृष्ण की भक्ति की और जोगन बन गई और संतों के साथ रहने लगी।
पति भोजराज की मृत्यु के बाद मीरा की भक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती गई। मीरा मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटों नृत्य करती थी। मीराबाई की कृष्ण के प्रति भक्ति उनके पति के परिवार को पसंद नहीं थी। उसके परिवार ने भी मीरा को कई बार जहर देकर मारने की कोशिश की। लेकिन श्री कृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।
कहा जाता है कि जीवन भर मीराबाई की भक्ति के कारण श्रीकृष्ण की आराधना करते हुए उनकी मृत्यु हो गई। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में कृष्ण की भक्ति करते हुए वह श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।
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