अब तक आपने अलग-अलग राज्यों के अलावा केंद्र सरकार द्वारा Common Civil Code लागू करने के बारे में सुना होगा, लेकिन उस पर आगे कोई अमल नहीं हुआ। देश में एक ही राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है, उस राज्य का नाम है गोवा। इस राज्य में, पुर्तगाली सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू की थी। वर्ष 1961 में समान नागरिक संहिता के साथ गोवा सरकार का गठन किया गया था। इस लेख में हम कॉमन सिविल कोड क्या है और कॉमन सिविल कोड के फायदे जानेंगे।

कॉमन सिविल कोड क्या है
कॉमन सिविल कोड का अर्थ है भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। समान नागरिक संहिता के लागू होने से हर धर्म के लिए एक समान कानून बन जाएगा। इस समय देश में हर धर्म के लोग शादी, तलाक, संपत्ति के बंटवारे और बच्चों को गोद लेने जैसे मामलों को अपने पर्सनल लॉ के मुताबिक सुलझाते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के व्यक्तिगत कानून हैं, जबकि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध हिंदू नागरिक कानून के अंतर्गत आते हैं।
Common Civil Code एक धर्मनिरपेक्ष कानून है जो सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। कॉमन सिविल कोड हर धर्म के लिए एक समान कानून लाएगी। यानी मुसलमानों को तीन शादियां देने और पत्नी को सिर्फ तीन बार तलाक देने से रिश्ता खत्म होने की परंपरा खत्म हो जाएगी। फिलहाल देश में हर धर्म के लोग इन मामलों को अपने पर्सनल लॉ के तहत सुलझाते हैं। वर्तमान में मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध हिंदू सिविल लॉ के तहत आते हैं।
कॉमन सिविल कोड के फायदे
1. कॉमन सिविल कोड को लागू करने के पक्ष में लोगों का तर्क है कि विभिन्न धर्मों के विभिन्न कानून न्यायपालिका पर बोझ डालते हैं। समान नागरिक संहिता के लागू होने से न्यायपालिका में लंबित मामलों का समाधान आसानी से हो जाएगा।
2. Common Civil Code के लागू होने से शादी, तलाक, गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे में सभी के लिए एक समान कानून बन जाएगा। वर्तमान में सभी धर्म इन मामलों को अपने कानून के अनुसार बांटते हैं।
3. कॉमन सिविल कोड के पैरोकारों का कहना है कि इससे महिलाओं की स्थिति मजबूत होगी क्योंकि कुछ धर्मों में महिलाओं के बहुत सीमित अधिकार हैं।
4. Common Civil Code के लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, गोद लेने और पिता की संपत्ति में महिलाओं के अधिकार जैसे मामलों में भी यही नियम लागू होंगे।
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