ठाकुर को भोजपुरी भाषा और संस्कृति का एक बड़ा ध्वजवाहक माना जाता है। भोजपुरी झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बंगाल के कुछ हिस्सों सहित बिहार के प्रमुख हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है। वह न केवल इस भाषाई क्षेत्र में बल्कि उन शहरों में भी लोकप्रिय हैं जहां बिहारी श्रमिक अपनी आजीविका के लिए पलायन करते हैं। अगर आप नहीं जानते की, भिखारी ठाकुर कौन थे तो हम इस आर्टिकल में Bhikhari Thakur की जीवनी को संक्षेप में बताने जा रहे है।

भिखारी ठाकुर कौन थे
भिखारी ठाकुर भोजपुरी के एक सक्षम लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के संदेशवाहक, लोक गीतों और भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वह भोजपुरी गीतों और नाटकों की रचना और अपने सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ कहा जाता है। वे एक साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को अपनी कविता और नाटक की भाषा बनाया।
Bhikhari Thakur की जीवनी
भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था। वह गांव छोड़कर जीविका कमाने के लिए खड़गपुर चले गए। वहाँ उन्होंने काफी पैसा कमाया लेकिन वह अपने काम से संतुष्ट नही थे। उनका मन रामलीला में बस गया था। इसके बाद वह जगन्नाथ पुरी गए।
अपने गांव आने के बाद उन्होंने एक नृत्य मंडली बनाई और रामलीला बजाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने गाने गाए और सामाजिक कार्यों से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही उन्होंने नाटक, गीत और किताबें लिखना भी शुरू किया। उनकी पुस्तकों की भाषा बहुत ही सरल थी जिसने लोगों को खूब आकर्षित किया। उनके द्वारा लिखित पुस्तकें वाराणसी, हावड़ा और छपरा से प्रकाशित हुईं। 10 जुलाई 1971 को चौरासी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
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