हम भाषाविज्ञान के ‘अर्थ के परिवर्तन की दिशा’ के तहत अर्थ संकोच और अर्थ विस्तार का अध्ययन करते हैं। इसमें तीसरी दिशा जनादेश भी है। इस लेख में हम अर्थ संकोच और अर्थ विस्तार किसे कहते हैं जानेंगे।

अर्थ संकोच किसे कहते हैं
जब किसी शब्द का पहले व्यापक अर्थों में प्रयोग किया जाता था और अब इसका प्रयोग सीमित अर्थ के लिए किया जाता हो, तो उस शब्द का अर्थ संकुचित जाता है, इसे ही अर्थ संकोच कहते हैं।
अर्थ संकोच का अर्थ है- अर्थ का संकोच (सिकुड़न) होना। पहले जैसे, सीधे का मतलब होता था कि वे वास्तव में सीधे होते हैं। लेकिन आजकल बेवकूफ के लिए भी इसी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप किसी को उसके चेहरे पर बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो आप उसे बताएंगे कि ‘आप बहुत सीधे हो’।
दूसरे एक उदाहरण के तौर पर, साँप का अर्थ है ‘सरकने वाला’ या ‘रेंगने वाला जीव’ अर्थात जो भी प्राणी सरकने वाला उसके लिए हम साँप का उपयोग करते हैं। लेकिन अब यह केवल सर्प शब्द का इस्तेमाल ‘सरकने वाले’ जीव के तौर पर नहीं तो किसी को विषारी या जहरीले विचार वाला व्यक्ति बताने के लिए भी किया जाता है।
अर्थ विस्तार किसे कहते हैं
अर्थ विस्तार उस अर्थ को कहते हैं जिसका अर्थ पहले की अपेक्षा में फैल गया हो। उदाहरण के लिए, जब हम किसी लड़की की सुंदरता के बारे में बात करते हैं, तो हम कहते हैं कि लड़की भयानक रूप से सुंदर है, जबकि ‘भयानक’ डरावना शब्द है। ऐसे कई उदाहरण हैं। इसका अर्थ है हिचकिचाहट के ठीक विपरीत है। यानी वे शब्द जो पहले संकीर्ण अर्थ देते थे। अब उनका उपयोग व्यापक अर्थ के लिए किया जाता था।
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